मोदी सरकार ने पर्यावरण पर अच्छे कार्यक्रम बनाए, कार्यान्वयन पर ध्यान नहीं दिया गया: सुनीता नारायण

प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुनीता नारायण ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दूसरे कार्यकाल में पर्यावरण क्षरण और जलवायु परिवर्तन से निपटने की सरकार की सही मंशा थी लेकिन कार्यान्वयन पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया।

नारायण ने यहां पीटीआई के संपादकों के साथ बातचीत में कहा कि लगातार रहे विभिन्न प्रशासनों ने पर्यावरण मंजूरी की प्रणाली को इस हद तक कमजोर कर दिया है कि यह कारगर नहीं रह गई।

उन्होंने कहा, ‘‘कुल मिलाकर मेरा आकलन है कि सरकार की बातें और मंशा सही थी। अगर आप सरकार की नीतियों को देखें तो आप यह तर्क नहीं दे सकते कि कोई चीज गलत है। अक्षय ऊर्जा, पेयजल, कचरा प्रबंधन सबकुछ था। अत: आपने पूरा एक पैकेज तैयार किया। लेकिन, मेरा आकलन है कि कार्यान्वयन पर पर्याप्त रूप से ध्यान नहीं दिया गया।’’

मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में अक्षय ऊर्जा का उपभोग बढ़ाने, वन क्षेत्र का दायरा बढ़ाने, वायु प्रदूषण कम करने, सभी घरों में पाइप से पेयजल पहुंचाने और एकल उपयोग वाले प्लास्टिक पर रोक लगाने जैसी अनेक पहल पर ध्यान दिया था।

मोदी सरकार ने पिछले पांच साल में वन, वन्यजीव और पर्यावरण कानूनों में महत्वपूर्ण संशोधन किए और इनमें से कुछ पर विपक्षी दलों तथा पर्यावरणविदों की आलोचनात्मक प्रतिक्रिया आई।

‘सेंटर फॉर साइंस एंड एनवॉयरमेंट’ (सीएसई) की महानिदेशक सुनीता नारायण के अनुसार पर्यावरण से जुड़े सरकार के प्रमुख कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने के लिए नयी सोच की जरूरत है।

उन्होंने कहा, ‘‘इनमें से कई कार्यक्रम ऐसे बिंदु पर पहुंच गए हैं जहां हम अच्छे परिणाम हासिल नहीं कर पाए। अगर हम नदियों की सफाई के मुद्दे को देखें तो हम अपनी नदियों को साफ नहीं कर पाए। हम अब भी ऐसी स्थिति में हैं जहां हम अपनी नदियों से साफ पानी ले रहे हैं और उनमें गंदा पानी डाल रहे हैं।’’

नारायण ने कहा कि सरकारों को पुराने तरीकों से विकास करना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘पुराने तरीके से विकास जमीनी स्तर पर सीखने, प्रयासों को बदलने और फिर से सीखने पर आधारित होता है।’’

उन्होंने कहा कि सरकार लोगों की बात सुनने और धरातल की चीजों से सीखने की क्षमता खो चुकी है। नारायण ने कहा कि सरकार के कार्यक्रमों में नई सोच को डालने के लिए सुझाव लेना जरूरी है।

उन्होंने कहा, ‘‘अगर आप इस ओर इशारा करते हैं कि उज्ज्वला योजना शानदार थी, लेकिन इससे फायदे नहीं मिल रहे क्योंकि महिलाओं के पास सिलेंडर भरवाने के लिए पैसा नहीं है तो आप सरकार के दुश्मन नहीं हो जाते।’’

पर्यावरणविद् ने यह भी कहा कि पिछली सरकारों में नए विचारों को अपनाने का पर्याप्त साहस नहीं था लेकिन वे ज्यादा सुनती थीं।

नारायण ने कहा, ‘‘लेकिन अगर आप मुझसे कहें कि पर्यावरण के क्षेत्र में कामकाज के मामले में इस सरकार की तुलना पिछली सरकारों से करूं तो मैं आपसे बिल्कुल साफ तौर पर कहूंगी कि वे दोनों बुरी और अच्छी हैं।’’

नारायण 2002 से 2020 तक सरकार द्वारा नियुक्त पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम एवं नियंत्रण) प्राधिकरण की सदस्य रही हैं।

भारत में कितने समय बाद आसमान और नदियां साफ होंगे, इस प्रश्न पर उन्होंने कहा कि यह सब परियोजनाओं को लागू करने और कुछ असुविधाजनक फैसले लेने की सरकार की क्षमता पर निर्भर करता है।

उन्होंने कहा, ‘‘पर्यावरण मंजूरी प्रणाली न तो पर्यावरण के लिए काम कर रही है और न ही विकास के लिए। यह केवल सलाहकारों या लेखा परीक्षकों और अन्य लोगों के लिए काम कर रही है जो परियोजनाओं को देखते हैं और उन्हें मंजूरी देते हैं। सभी सरकारों ने परियोजनाओं को मंजूरी दी है, यहां तक ​​कि कांग्रेस सरकार, संप्रग सरकार ने भी। सभी सरकारों ने निर्णय लेने की प्रणाली को धीरे-धीरे कमजोर किया है, जिससे यह कमजोर होती जा रही है। आज इसका कोई मतलब नहीं है।’’

नारायण ने दावा किया कि पर्यावरण पर प्रभाव के आकलन संबंधी अधिकतर रिपोर्ट ‘कट और पेस्ट’ करके तैयार किए गए दस्तावेज हैं।