कौन हैं मार्कोस कमांडो, जिसने 15 भारतीयों को दी ‘नई जिंदगी’

कौन हैं मार्कोस कमांडो, जिसने 15 भारतीयों को दी 'नई जिंदगी'

पानी, हवा या हो जमीन। अरब सागर में सोमालिया के तट पर हाइजैक किए गए जहाज से 15 भारतीयों को बचाकर इंडियन नेवी के जाबांज कमांडो ने फिर अपनी ताकत का लोहा मनवा लिया है।

इस कारनामे को अंजाम किसी ओर ने नहीं दिया है, बल्कि भारतीय नौसेना के जांबाज़ मरीन कमांडो मार्कोस ने दिया है। भारतीय नौसेना लगातार उस जहाज पर नजर रख रही थी और मौका मिलते ही मरीन कमांडो मार्कोस ने ऑपरेशन पूरा कर दिया।

जहाज पर सवार 15 भारतीयों और सभी 21 सदस्यों को सुरक्षित बचा लिया गया। इस जहाज को कुछ हथियारबंद समुद्री डकैतों ने अगवा कर लिया था।

मगर भारतीय नौसेना ने भारतीय नागरिकों को बचाने के लिए आईएनएस चेन्नई, मेरीटाइम पैट्रॉल एयरक्राफ्ट, हेलीकॉप्टर और लंबी दूरी के विमान और प्रीडेटर एमक्यू नाइन बी ड्रोन तैनात किए थे।

मगर इन सबमें असल कारनामा मार्कोस कमांडो ने दिखाया और मौत के मुंह से सभी लोगों को बचा लिया अब ऐसे में कई लोग जानना चाहते हैं कि आखिर ये मार्कोस कमांडो क्या हैं? ये कौन सी फोर्स है? कैसे काम करती है?

दुश्मनों के लिए मौत का दूसरा नाम ‘मार्कोस’

मार्कोस कमांडर को पानी में मौत को मात देने में महारत हासिल है। इन लोगों को समंदर का सिकंदर भी कहा जाता है। इन कमांडो को पानी में अपने ऑपरेशन को अंजाम देने के लिए तैयार किया जाता है।

सेना की मरीन कमांडो को मार्कोस के नाम से जाना जाता है। जिसका आधिकारिक नाम मरीन कमांडो फोर्स है। यह भारतीय नौसेना की एक स्पेशल फोर्स यूनिट है। मार्कोस को भारतीय समुद्री विशेष बल कहा जाता था। बाद में इसका शॉर्ट नेम ‘मार्कोस’ रखा गया।

दरअसल, मार्कोस कमांडो यानी मरीन कमांडो फोर्स का गठन साल 1987 में हुआ था। इससे पहले सत्तर के दशक में भारत-पाकिस्तान का युद्ध हुआ था।

इसी दौरान इस बात की जरूरत महसूस हुई कि नेवी के पास ऐसे कमांडो की फोर्स होनी चाहिए, जो पानी में जाकर दुश्मनों के छक्के छुड़ा दे। इस सोच ने 1986 में आकार लेना शुरू किया।

नेवी ने मैरीटाइम स्‍पेशल फोर्स की योजना शुरू की। इसका उद्देश्य ऐसे कमांडो तैयार करना था, जो खास ऑपरेशन जैसे काउंटर टेररिस्ट मुहिम चला सकें।

इसके एक साल बाद यह यूनिट अस्तत्वि में आई और तब से किसी भी मुश्किल घड़ी में इसी टीम को भेजा जाता है। हालांकि, 1991 में इसका नाम ‘मरीन कमांडो फोर्स’ कर दिया गया।

आसान नहीं है मार्कोस कमांडो बनना

मार्कोस कमांडो बनना कोई आसान बात नहीं है। इसकी ट्रेनिंग इतनी टफ होती है और ट्रेनिंग के दौरान ही कई जवान हार मान जाते हैं। कहा जाता है कि इसकी ढाई से तीन सालों तक लगातार खतरानक ट्रेनिंग चलती है, जिसमें मौत से लड़ना सिखाया जाता है।

इस ट्रेनिंग के दौरान जितनी सख्ती दिखाई जाती है, उतनी शायद ही सेना के किसी और विंग में हो। ट्रेनिंग के दौरान जवानों को हर तरह से मजबूत बनाया जाता है और उन्हें यह सिखाया जाता है कि कैसे मौत के जबड़े से जिंदगी को छीनना है।

इन्हें केवल इंडियन नेवी ही नहीं, बल्कि ब्रिटिश और अमेरिकी नेवी के ट्रेनरों से भी ट्रेनिंग दिलवाई जाती है। इस टीम में ज्यादातर 20-22 साल के युवाओं को लिया जाता है।

इनकी ट्रेनिंग जितनी कठिन होती है, इसके बारे में एक आम व्यक्ति अंदाजा भी नहीं लगा सकता है। इसमें हजारों सैनिकों में से कुछ ही सैनिकों को ट्रेनिंग के लिए आगे भेजा जाता है।

ट्रेनिंग के दौरान उन्हें 24 घंटे में से मात्र 4-5 घंटे ही सोने का समय मिलता है। हर परिस्थिति में सैनिकों को अपनी ट्रेनिंग पूरी करनी होती है। आम शब्दों, में कहें, तो यह ट्रेनिंग इतनी टफ होती है कि कुछ युवा तो आधे में ही इसे छोड़कर चले जाते हैं।

इन सभी पड़ावों को पार करने वाले सैनिकों को आगे की ट्रेनिंग के लिए अमेरिका में नेवी सील के साथ ट्रेनिंग दी जाती है। इन सबके बाद मार्कोस कमांडो तैयार होते हैं।