कभी अच्छे दोस्त हुआ करते थे इजरायल-ईरान, आखिर कैसे बन गए जानी दुश्मन

कभी अच्छे दोस्त हुआ करते थे इजरायल-ईरान, आखिर कैसे बन गए जानी दुश्मन

दोस्ती कब दुश्मनी में बदल जाए, समय का कुछ पता नहीं। ऐसा ही कुछ इजरायल और ईरान के साथ हुआ। ये दोनों देश कभी बहुत अच्छे दोस्त हुआ करते थे।

हालांकि, मौजूदा हालत को देखकर ऐसा विश्वास करना मुश्किल लगता है, लेकिन हकीकत यही है। एक समय ऐसा था जब इजरायल ने ईरान के लिए सद्दाम हुसैन और पूरी दुनिया से दुश्मनी ले ली थी। आज इजरायल और ईरान ही एक दूसरे के दुश्मन हो गए हैं।

बीते शनिवार रात को ईरान ने इजराइल पर सीधा हमला कर दिया। एक के बाद एक मिसाइलें दागी और ड्रोन से हमला किया। भले ही इस हमले को इजराइल द्वारा सीरिया के ईरानी दूतावास पर 1 अप्रैल को किए अटैक का जवाब कहा जा रहा है।

जो देश कभी दोस्ती के लिए जाने जाते थे वो आज दुश्मनी निभाने के लिए जंग के मैदान में उतर चुके हैं। आखिर 2 अच्छे दोस्त देशों के बीच हालात कैसे बदल गए। क्या है इसके पीछे की वजह। चलिए जानते हैं।

दोनों देशों की कहानी शुरू होती है साल 1948 से जब यहूदियों ने इजरायल नाम का एक देश खुद के लिए बनाया। उस वक्त दुनिया के मात्र 2 मुस्लिम देशों ने इजरायल को देश की मान्यता दी थी।

उनमें से एक तुर्की और दूसरा ईरान था। साल 1948 में तेल अवीव शाह मोहम्मद रज़ा पहलवी के अधीन सहयोगी बन गए। उस समय ईरान मध्य पूर्व में सबसे बड़े यहूदी समुदाय का घर था।

नए यहूदी राज्य ने हथियारों, प्रौद्योगिकी और कृषि उपज के बदले में अपना 40 प्रतिशत तेल ईरान से आयात किया। इजरायल की मोसाद जासूसी एजेंसी ने शाह की गुप्त पुलिस को ट्रेनिंग देने में मदद की।

हालांकि बाद में ईरान में 1979 की इस्लामी क्रांति ने मोहम्मद रज़ा पहलवी को राजगद्दी से हटा दिया। इसके बाद दोनों देशों की मित्रता में खटास आ गई। इजरायल इल ने नये इस्लामी गणतंत्र को मान्यता नहीं दी।

अयातुल्ला इजरायल को यरूशलेम पर अवैध कब्जा करने वाला मानते थे। हालांकि, अनौपचारिक वाणिज्यिक संबंध पहले की तुलना में बने रहे।

इस्लामिक जिहाद 1980 में इजरायल के खिलाफ हथियार उठाने वाला पहला इस्लामी फिलिस्तीनी संगठन बन गया, जिसका मुख्य समर्थक ईरान था।

हालांकि, इसके बावजूद 1980 से 1988 तक चले ईरान-इराक युद्ध के दौरान सद्दाम हुसैन से लड़ने में मदद के लिए इजरायल ने तेहरान को लगभग 1,500 मिसाइल भेजीं।

इजरायल ने 1982 में लेबनान पर वहां स्थित फिलिस्तीनी समूहों का मुकाबला करने के लिए हमला किया। इसके बाद कुछ समय के लिए राजधानी बेरूत पर कब्ज़ा कर लिया।

ईरान के स्पेशल इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) ने बाद में आतंकवादी समूह हिजबुल्लाह के निर्माण का समर्थन किया, जिसने दक्षिणी लेबनान में शिया गढ़ों से इजरायली बलों के खिलाफ अभियान चलाया।

इजरायल ने अर्जेंटीना सहित विदेशों में हमलों के लिए हिजबुल्लाह को दोषी ठहराया, जहां 1992 में इजरायली दूतावास पर बमबारी में 29 लोग मारे गए और 1994 में एक यहूदी सामुदायिक केंद्र पर हमले में 85 लोग मारे गए।

2005 में अति रूढ़िवादी महमूद अहमदीनेजाद के चुनाव के बाद तनाव बढ़ गया, जिन्होंने कई मौकों पर इजरायल को खत्म करने की बात की और नरसंहार को एक मिथक बताया।

इस वर्ष ईरान ने इस्फ़हान में यूरेनियम संवर्धन फिर से शुरू किया। 2015 में विश्व शक्तियों द्वारा ईरान परमाणु समझौते पर मध्यस्थता की गई तो नेतन्याहू ने इसे ऐतिहासिक गलती बताया।

इजरायल ने लंबे समय से दुश्मन देश सऊदी अरब, ईरान के मुख्य धार्मिक और क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी के साथ संबंध विकसित करना शुरू कर दिया।