सऊदी अरब और ईरान की दोस्ती, भारत के लिए क्या है इसके मायने

दुनिया गोल है ये बात तो आप अक्सर सुनते होंगें. विदेश नीति में एक बात है जो खूब चलती है, दुनिया में न कोई हमेशा के लिए दोस्त है और न ही कोई हमेशा के लिए दुश्मन. कुछ ऐसा ही हुआ सऊदी और ईरान के बीच, वर्षों से जो बर्फ जमी थी वो अब पिघलनी शुरु हो गई है. दोनो अब दोस्त बन रहें है और चीन इसकी मध्यस्ता करा रहा है.

क्यों थी दुश्मनी

वैसे तो सऊदी अरब और ईरान में दुश्मनी के कई कारण है. लेकिन सबसे बड़ा कारण है धार्मिक मतभेद. दोनो इस्लामीक मुल्क हैं लेकिन दोनो अलग-अलग पंथ को मानते है. सऊदी अपने आप को एक सुन्नी मुस्लिम दुनिया का महाशक्ति मानता है तो ईरान में ज्यादातर लोग शिया मुस्लमान हैं. एक और कारण रहा सऊदी और अमेरिका का प्रेम. अमेरिका ने ईरान पर कई प्रतिबंध लगा कर रखा है.

 जब अरब मुल्क में अस्थिरता पैदा हुई तो ईरान और सऊदी ने इस मौके का फायदा उठाया और सीरिया, बहरीन, यमन जैसे देशों में अपना प्रभाव बढ़ाने को लेकर खींचतान बढ़ी. सीरिया में ईरान और रूस ने राष्ट्रपति बशर-अल-असद को समर्थन दिया जिससे सऊदी के समर्थन वाले विद्रोही गुटों को हटाने में कामयाबी मिली है. साथ ही सऊदी अरब ने यमन के खिलाफ युद्ध भी छेड़ा ताकि ईरान के प्रभाव को कम किया जा सके.

इन दोनो देशों के मतभेद में जैसा हमने पहले बताया था कि अमेरिका की भूमिका भी अहम थी. ट्रंप जब राष्ट्रपति थे तो उनका संबंध सऊदी से बेहतर था साथ ही ट्रंप का संबंध इजरायल से भी अच्छा था लेकिन ईरान और इजरायल आपस में एक दूसरे को देखना भी पसंद नहीं करते हैं.

ईरान-सऊदी नजदीकी में भारत

वैसे तो भारत का संबंध दोनों देशों से सही रहा है. भारत अरब देशों में संतुलन बना कर चलता है. लेकिन भारत के लिए चिंता का विषय चीन है. चीन की भूमिका इन दोनों देशों की मध्यस्ता में अहम रही है. अगर चीन की पकड़ यहां मजबूत होता है तो जाहिर है भारत के लिए चींता का विषय है.