क्या आप जानते हैं Neem Karoli Baba का असली नाम? जिनके आगे एप्पल, फेसबुक के मालिकों ने भी झुकाया सर

क्या आप जानते हैं Neem Karoli Baba का असली नाम? जिनके आगे एप्पल, फेसबुक के मालिकों ने भी झुकाया सर

Neem Karoli Baba: देवभूमि उत्तराखंड की वादियों में बसे दिव्य स्थल “कैंची धाम” के नीम करौली बाबा की ख्याति विश्वभर में प्रसिद्घ है. इनके द्वारा किए गए चमत्कारों को सुनकर भक्त इनकी भक्ति में लीन हो जाते हैं. देवभूमि उत्तराखंड के नैनीताल-अल्मोड़ा मार्ग पर बना एक छोटा सा आश्रम नीम करोली बाबा आश्रम के नाम से जाना जाता है.

समुद्र तल से 1400 मीटर की ऊंचाई पर यह आश्रम एकदम शांत, साफ-सुथरी जगह, हरियाली, सुकून वाली जगह पर बना ये आश्रम धर्मावलंबियों के बीच कैंची धाम के रूप में जाना जाता है.

कई लोग नीम करोली बाबा के सिद्धांतों पर अमल करते हैं तो कई लोग उनके द्वारा बताए गए उपायों को भी अपनाते हैं. भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी कई जाने माने लोग भी उन्हें काफी मानते हैं जिसमे फेसबुक के फाउंडर मार्क जुकरबर्ग हों या एप्‍पल के को-फाउंडर स्‍टीव जाब्‍स के नाम भी शामिल हैं. नीम करोली बाबा के कई चमत्‍कारिक किस्‍से और उनकी कही बातें पूरी दुनिया में मशहूर है.

लक्ष्मी नारायण शर्मा था नीम करोली बाबा का नाम

नीम करोली बाबा का असली नाम लक्ष्मी नारायण शर्मा था।वह जब 17 वर्ष के थे तभी उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हो गई थी. 11 वर्ष की उम्र में ही उनका विवाह हो गया था. लेकिन 1958 में बाबा ने अपने घर को छोड़ दिया था. उसके बाद वह साधुओं का जीवन जीने के लिए निकल पड़े थे. उन्हें कई लोग तलईया बाबा के नाम से पुकारते थे.

ऐसे पड़ा नीम करोली बाबा नाम

एक समय जब बाबा फर्स्ट क्लास कम्पार्टमेंट में सफर कर रहे थे लेकिन उनके पास टिकट नहीं था तब टीटी ने उन्हें ‘नीब करोली’ स्टेशन पर उतार दिया. ऐसे में वह स्टेशन से थोड़ी दूर पर ही अपना चिपटा धरती में गाड़कर बैठ गए. ऐसे में ट्रेन भी जाने लगी लेकिन ट्रेन एक इंच भी अपनी जगह से नहीं हिली.

जब ट्रेन नहीं चली तो ऑफिशल्स ने बाबा से माफी मांगी और उन्हें सम्मान के साथ वापस ट्रेन में बैठाया. बाबा के ट्रेन में बैठते ही ट्रेन चल पड़ी. तभी से उनका नाम नीम करोली बाबा रख दिया गया. उनके सैकड़ों चमत्कार के किस्से है जिसे सुन कर लोग हैरान रह जाते हैं.

नदी के पानी को किया था घी के रूप में उपयोग

बाबा के चमत्कारों के बारे में बताया जाता है कि एक बार बाबा के धाम में आयोजित भंडारे के दौरान घी की कमी पड़ गईं और बाबा के आदेश पर आश्रम से नीचे बहती नदी के पानी को घी के रूप में उपयोग किया गया, ऐसे में जो प्रसाद जो पानी डाला गया उसने घी का ही रूप ले लिया.