देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु की स्तुति करने से सभी पीड़ाएं होती है दूर, जानिये इसका महत्व

देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु की स्तुति करने से सभी पीड़ाएं होती है दूर, जानिये इसका महत्व

हिन्दू धर्म में ‘एकादशी’ के व्रत का बहुत बड़ा महत्व है। भगवान विष्णु का कृपा पात्र बनने के लिए भक्त को हर ‘एकादशी’ पर व्रत करना चाहिए। अगर भक्त सभी एकादशी का व्रत नहीं कर सकते हैं, तो उन्हें देवउठनी एकादशी पर तो अवशय व्रत करना चाहिए।

इस शुभ दिन का महत्व इसलिए और भी ज्यादा बढ़ जाता है क्योंकि यह वही समय होता है जब सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु चार महीने बाद शयन से उठते हैं और सृष्टि के संचालन का कार्य अपने हाथ में लेते हैं।

इस दिन से सभी मांगलिक कार्यों की शुरुआत भी हो जाती है। इस साल देवउठनी एकादशी का आरंभ 22 नवंबर को रात्रि 11:03 से हो जाएगा और इसका समापन 23 नवंबर प्रातः 09:01 तक है।

भगवान विष्णु के भक्त 23 नवंबर को देवउठनी एकादशी का व्रत कर सकते हैं। एकादशी के दिन घर में चावल बनाना निषेध है। इसके पीछे भी एक पौराणिक कथा है।

एकादशी व्रत पूजा विधि

एकादशी के दिन सुबह ब्रह्म वेला में उठकर पवित्र स्नान करें। इसके बाद अपने घर और मंदिर की सफाई करें। साथ ही किसी चौकी पर भगवान विष्णु की मूर्ती स्थापित करें और विधिवत पूजा करें।

सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु के सामने दीपक जलाए। भगवान विष्णु को पीले चंदन से तिलक करें, साथ ही उन्हें विशेष भोग अर्पित करें। इसके अलावा व्रत कथा पढ़ें और आरती के साथ पूजा का समापन करें। अगले दिन व्रत का पारण सात्विक भोजन से करें।

एकादशी के दिन इन मंत्रो का करें जाप

॥ विष्णु शान्ताकारं मंत्र ॥

शान्ताकारं भुजंगशयनं पद्मनाभं सुरेशं

विश्वाधारं गगन सदृशं मेघवर्ण शुभांगम् ।

लक्ष्मीकांत कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं

वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्व लौकेक नाथम् ॥1॥

यं ब्रह्मा वरुणैन्द्रु रुद्रमरुत: स्तुन्वानि दिव्यै स्तवैवेदे: ।

सांग पदक्रमोपनिषदै गार्यन्ति यं सामगा: ।

ध्यानावस्थित तद्गतेन मनसा पश्यति यं योगिनो

यस्यातं न विदु: सुरासुरगणा दैवाय तस्मै नम: ॥2॥