मुकाम पर पहुंचा आदित्य एल-1, अब आगे क्या ?

मुकाम पर पहुंचा आदित्य एल-1, अब आगे क्या ?

जब भारत ने चंद्रयान-3 को लॉन्‍च किया था तो पूरी दुनिया की नजर भारत पर थी। क्‍योंकि भारत ने लैंडिंग के लिए साउथ पोल को चुना था। भारत से पहले अमेरिका, रूस और चीन ने चांद पर लैंडिंग तो की थी, लेकिन कोई भी देश चन्द्रमा के साउथ पोल पर लैंड नहीं कर पाया था।

भारत ने ऐसा करके एक नया इतिहास रच दिया। आपको बता दें कि भारत से पहले कई देशों ने सूर्य मिशन लॉन्‍च किए हैं, लेकिन चांद की तरह सूरज की सतह पर किसी भी देश का यान नहीं पहुंच पाया।

ISRO का आदित्य सौर यान 126 दिनों में अंतरिक्ष में 15 लाख किलोमीटर का सफर तय कर L1 प्वाइंट के Halo Orbit में इंसर्ट हो गया है।

इसके साथ ही करीब 400 करोड़ की लागत वाली भारत की पहली सोलर ऑब्जरवेटरी देश समेत पूरी दुनिया के तमाम सैटेलाइट्स को सौर तूफानों से बचाएगी।

Aditya-L1 के मिशन की लाइफ 5 साल 2 महीने है। मिशन की प्रोजेक्ट डायरेक्टर निगार शाजी के मुताबिक ये मिशन सिर्फ सूरज की स्टडी करने में ही मदद नहीं करेगा बल्कि सौर तूफानों की जानकारी भी देगा।

जिससे भारत के पचासों हजार करोड़ रुपये के पचासों सैटेलाइट को सुरक्षित किया जा सकेगा। जो भी देश इस तरह की मदद मांगेगा, उन्हें भी मदद दी जाएगी। ये प्रोजेक्ट देश के लिए बेहद जरूरी है।

क्या करेगा आदित्य-L1 सौर यान?

आदित्य L1 सौर यान सूरज के कोरोना से निकलने वाली गर्मी और गर्म हवाओं की स्टडी करेगा।
सौर हवाओं के विभाजन और तापमान की स्टडी करेगा।
सौर वायुमंडल को समझने का प्रयास करेगा।

सूरज की स्टडी के लिए क्यों जरूरी है ये मिशन?

सूरज हमारा तारा है। उससे ही हमारे सौर मंडल को ऊर्जा यानी एनर्जी मिलती है। इसकी उम्र करीब 450 करोड़ साल मानी जाती है। बिना सौर ऊर्जा के धरती पर जीवन संभव नहीं है।

सूरज की ग्रैविटी की वजह से ही इस सौर मंडल में सभी ग्रह टिके हैं। सूरज का केंद्र यानी कोर में न्यूक्लियर फ्यूजन होता है। सूरज की स्टडी इसलिए ताकि उसकी बदौलत सौर मंडल के बाकी ग्रहों की समझ भी बढ़ सके।

सूरज की वजह से लगातार धरती पर रेडिएशन, गर्मी, मैग्नेटिक फील्ड और चार्ज्ड पार्टिकल्स का बहाव आता है। इसी बहाव को सौर हवा या सोलर विंड कहते हैं।

कोरोनल मास इजेक्शन की वजह से आने वाले सौर तूफान से धरती को कई तरह के नुकसान की आशंका रहती है। इसलिए अंतरिक्ष के मौसम को जानना जरूरी है। यह मौसम सूरज की वजह से बनता और बिगड़ता है।

आदित्य को L1 प्वाइंट पर डालना एक चुनौतीपूर्ण काम था। इसमें गति और दिशा का सही तालमेल जरूरी था। इसके लिए इसरो को यह जानना जरूरी था कि उनका स्पेसक्राफ्ट कहां था, कहां है और कहां जाएगा।

उसे इस तरह ट्रैक करने के प्रोसेस को ऑर्बिट डिटरमिनेशन कहते हैं। Halo Orbit में डालने के लिए Aditya-L1 सैटेलाइट के थ्रस्टर्स को थोड़ी देर के लिए ऑन किया गया। इसमें कुल मिलाकर 12 थ्रस्टर्स हैं।