जानें 23 मार्च को क्यों मनाया जाता है शहीद दिवस और क्या है इसका महत्व

भारत ने 1947 में अंग्रेजों से अपनी स्वतंत्रता प्राप्त की थी। इन कुर्बानियों और वीरों को श्रद्धांजलि देने के लिए भारत शहीद दिवस मनाता है। 23 मार्च को तीन स्वतंत्रता सेनानियों भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव थापर को अंग्रेजों ने फांसी पर चढ़ा दिया था। बेहद कम उम्र में इन वीरों ने आजादी के लिए लड़ाई लड़ी और इसी उद्देश्य के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।

कई युवा भारतीयों के लिए भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव प्रेरणा के स्रोत बने हैं। ब्रिटिश शासन के दौरान भी, उनके बलिदान ने कई लोगों को आगे आने और अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया। यही कारण है कि इन तीनों क्रांतिकारियों को श्रद्धांजलि देने के लिए भारत 23 मार्च को शहीद दिवस के रूप में मनाता है।

भगत सिंह को 19 वर्ष की छोटी आयु में उन्हें फांसी दे दी गई। राजगुरु का जन्म 1908 में पुणे में हुआ था। वे हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी में भी शामिल हुए थे। सुखदेव 15 मई 1907 में हुआ था। उन्होंने पंजाब और उत्तर भारत में क्रांतिकारी सभाएं की और लोगों के दिलों में जोश पैदा किया।

लाला लाजपत राय की हत्या के बाद कारण भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, आजाद और कुछ अन्य लोगों ने आजादी के लिए संग्राम का मोर्चा संभाल लिया था। अंग्रेजी शासन के हुकूमत के खिलाफ आवाज उठाते हुए उन्होंने पब्लिक सेफ्टी और ट्रेड डिस्ट्रीब्यूटर बिल के विरोध में 8 अप्रैल, 1929 को सेंट्रल असेंबली में बम फेंके थे।

‘इंकलाब जिंदाबाद’ का नारा लगाते लगाते भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर हत्या का आरोप लगाया गया। हत्या के आरोप में 1931 में उन्हें 23 मार्च को लाहौर जेल में फांसी दे दी गई। उनका अंतिम संस्कार सतलुज नदी के तट पर किया गया। अब तक उनके जन्म स्थान में हुसैनीवाला या भारत-पाक सीमा पर शहीदी मेला या शहादत मेला आयोजित किया जाता है।